Chitragupta Jayanti 2021: यमराज के खास सहयोगी हैं भगवान चित्रगुप्त, ऐसे हुई थी उनकी उत्पत्ति

चित्रगुप्त भगवान को यमराज का सहयोगी माना जाता है. वे सभी प्राणियों के अच्छे-बुरे का लेखा जोखा रखते हैं. हर साल वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को चित्रगुप्त जयंती के रूप में मनाया जाता है. मान्यता है कि इसी दिन उनकी उत्पत्ति हुई थी.

चित्रगुप्त महाराज कायस्थ लोगों के इष्ट देव माने जाते हैं, इसलिए उनकी जयंती को खासतौर पर कायस्थ समाज में ज्यादा प्रचलित है. भुजाओं में कलम, दवात, करवाल और किताब धारण करने वाले चित्रगुप्त जी को यमराज का मुंशी भी कहा जाता है. इस बार चित्रगुप्त जयंती 18 मई 2021 को है. जानिए इस मौके पर भगवान चित्रगुप्त की उत्पत्ति की कथा.

ये है कथा

सृष्टि के निर्माण के उद्देश्य से जब भगवान विष्णु ने अपनी योग माया से सृष्टि की कल्पना की तो उनकी नाभि से एक कमल निकला, जिस पर एक पुरूष आसीन थे. उनको ब्रह्मांड की रचना का दायित्व सौंपा गया. ब्रह्मांड की रचना और सृष्टि के निर्माण की वजह से उन्हें ब्रह्मा कहा गया. भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि का निर्माण करते समय स्त्री-पुरुष, पशु-पक्षी, देव-असुर, गंधर्व और अप्साराएं बनाईं.

इसी क्रम में यमराज का भी जन्म हुआ. यमराज को पृथ्वी पर रहने वाले मनुष्यों को कर्मों के अनुसार सजा देने का कार्य सौंपा गया था. यमराज ने इसके लिए ब्रह्मा जी से एक सहयोगी की मांग की. इसके बाद ब्रह्मा जी ने एक हजार वर्ष तक तपस्या की. इसके बाद एक पुरुष की उत्पत्ति हुई जिन्हें चित्रगुप्त कहा गया. ब्रह्मा जी की काया से उत्पन्न होने के कारण भगवान चित्रगुप्त को कायस्थ कहा गया.

पूजन से मिलती नर्क के कष्ट से मुक्ति

चित्रगुप्त जयंती के अलावा भगवान चित्रगुप्त की पूजा कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भी की जाती है. पूजा के लिए एक चौकी पर भगवान चित्रगुप्त की तस्वीर को रखें. इसके बाद श्रद्धापूर्वक उन्हें अक्षत, कुमकुम, सिन्दूर, पुष्प, दक्षिणा, धूप-दीप और मिष्ठान अर्पित करें. इसके बाद उनसे जाने अनजाने हुए अपराधों के लिए क्षमा मांगे. मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं. इससे व्यक्ति को मृत्यु के बाद नर्क के कष्ट नहीं भोगने पड़ते.

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